क्या महाराष्ट्र से सीखेगी कांग्रेस? दिल्ली में 'आप' के साथ मिलकर लड़ेगी चुनाव?

क्या महाराष्ट्र से सीखेगी कांग्रेस? दिल्ली में 'आप' के साथ मिलकर लड़ेगी चुनाव?



महाराष्ट्र प्रकरण में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति सफल नहीं हुई। राज्य में कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने की तैयारी कर रही है। इससे कांग्रेस का मनोबल ऊंचा हुआ है। पार्टी नेताओं को लग रहा है कि उसे इसका फायदा झारखंड के साथ-साथ दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी होगा जहां अगले कुछ ही महीनों में चुनाव होने हैं।




 

लेकिन महाराष्ट्र प्रकरण का एक संदेश यह भी है कि यहां विपक्षी दल भाजपा को रोकने में तभी सफल हो सके, जब वे सब एक साथ आकर खड़े हुए। ऐसे में सवाल खड़ा होने लगा है कि क्या कांग्रेस दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी या लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी वह एकला चलो की नीति पर आगे बढ़ेगी?

इस समय क्या है स्थिति?


लोकसभा चुनाव के पूर्व पार्टी ने शीला दीक्षित को पार्टी की कमान सौंपी थी। उनके नेतृत्व में पार्टी सीट भले ही न जीत पाई हो, लेकिन सात लोकसभा सीटों में पांच पर वह नंबर दो पर रही थी। पांच विधानसभा चुनाव क्षेत्रों में वह नंबर एक पर रहने के साथ ही लगभग चालीस सीटों पर नंबर दो पर रही थी। पिछले विधानसभा चुनाव में शून्य पर सिमटकर रह गई कांग्रेस के लिए यह उपलब्धि कम नहीं थी। 


लेकिन शीला दीक्षित के असमय निधन के बाद पार्टी की कमान पुराने कांग्रेसी दिग्गज सुभाष चोपड़ा के हाथ में है। वे लगातार बैठकें, धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी सभाओं में भीड़ भी जुट रही है। लेकिन पार्टी नेता भी यह स्वीकार करते हैं कि कांग्रेस अकेले दम पर सत्ता तक नहीं पहुंच पाएगी। तो क्या ऐसे में वह आम आदमी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने पर विचार कर सकती है?

क्या रहेगी पार्टी की रणनीति


दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने माना कि पार्टी का जनाधार लोकसभा चुनाव के दौरान वापस आया है, लेकिन अभी यह उतना मजबूत स्थिति में नहीं है कि हमें सरकार बनाने तक पहुंचा सके। ऐसे में क्या पार्टी आप से गठबंधन की संभावना पर विचार करेगी, इस सवाल पर उनका कहना है कि अभी की स्थिति में ऐसा कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। लंबी दूरी की राजनीति को ध्यान में रखकर पार्टी के कई नेता इसके पहले भी आप के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं रहे हैं।

आप ने भी किया इनकार


वहीं, लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस से गठबंधन के लिए आतुर रही आप विधानसभा चुनाव के दौरान आत्मविश्वास से भरी दिखाई दे रही है। उसे लगता है कि दिल्ली के विधानसभा चुनावों में वापसी करने में वह कामयाब रहेगी। अपने पांच साल के कामकाज के आधार पर पार्टी को भरोसा है कि वह सत्ता में वापसी करने में कामयाब रहेगी। पार्टी के एक नेता ने कहा कि लोकसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं की निगाह में प्रधानमंत्री का चेहरा होता है। जाहिर है कि लोगों के सामने नरेंद्र मोदी के मुकाबले दूसरा सशक्त उम्मीदवार नहीं था, जिसका फायदा भाजपा को मिला।

लेकिन ठीक यही स्थिति दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के मामले में भी कही जा सकती है। नेता के मुताबिक भाजपा के पास केजरीवाल के मुकाबले कोई नेता नहीं है। यही कारण है कि हम (आप) अकेले दम पर चुनाव में उतरेंगे और जीत हासिल करेंगे।